द हाॅन्टिंग मर्डर्स : पार्ट - 3
पुलिस स्टेशन का एक सामान्य सा केबिन;
"ये इस महीने में तीसरी बार है, जब इस तरह से एक लाश उसी घर में या उस जगह के आस-पास के एरिया में मिली है। शहर में आखिर हो क्या रहा है कुछ खबर है भी तुम लोगों को या नहीं?" - कमिश्नर सत्यपाल सिंह, इंस्पेक्टर नीरज चौहान पर लगभग चिल्लाते हुए बोल रहे था और इंस्पेक्टर सर नीचे किए हुए चुपचाप उन की बातें सुन रहा था।
एक इंस्पेक्टर हो कर, आखिर कमिश्नर को वह बोल भी क्या सकता था, भले ही इन सब में नीरज की कोई गलती नहीं थी और वह अपनी तरफ से पूरी जी जान लगा कर कोशिश और इन्वेस्टीगेशन सब कुछ तो कर ही रहा था लेकिन फिर भी अब अगर खूनी इतना शातिर है और उस का कोई सबूत हाथ नहीं आ रहा तो इसमें भला नीरज की क्या गलती थी।
"हम अपना काम कर रहे हैं सर!" - नीरज के दो कदम पीछे खड़ा सब इंस्पेक्टर मयंक आखिर कार बोल पड़ा
"क्या कहा काम... इसे तुम काम कहते हो, अगर काम ठीक से ही हो रहा होता तो कम से कम कल एक और लाश नहीं मिली होती हमें!" - मयंक की बात सुन कर जैसे कमिश्नर का पारा और चढ़ गया और वह थोड़े और गुस्से में इस बार मयंक पर बरसता हुआ बोला
"सर वह एरिया बहुत ही ज्यादा सुनसान है शायद इसीलिए खूनी को इतनी आसानी हो रही है, वहां से बच कर निकल पाने में..." - इस बार नीरज सफाई देता हुआ बोला
"आह्हह... अब और बहाने नहीं सुनने हैं मुझे नीरज, तुम लोगों से अगर यह काम नहीं होता तो बोल दो मैं स्पेशल टीम को यह सब सौंप दूंगा और तुम लोग बस आराम करो पुलिस स्टेशन में बैठ कर और वही अपने हमेशा वाले पॉकेटमार और गली के गुंडे पकड़ो, बस उस से ज्यादा तो कुछ होना नहीं तुम लोगों से।" - कमिश्नर इस बार सीधा-सीधा तंजिया लहजे में बोला
"वी आर सॉरी सर! हमने आपको निराश किया लेकिन हमें बस एक और मौका दें, इस बार आप निराश नहीं होंगे।" - नीरज पूरे जोश के साथ बोला, (मन तो उस का काफी कुछ और भी बोलने को कर रहा था लेकिन उस ने जैसे तैसे अपने गुस्से को दबाया क्योंकि अपने ऊपर से यह नाकारा का इल्जाम हटाने के लिए यह एक और मौका तो उसे चाहिए ही था आखिर...)
"यस सर! हमें बस 10 दिन और चाहिए, कुछ ना कुछ तो जरूर बड़ा हाथ लगेगा ही हमारे, हम काफी करीब हैं अपने इन्वेस्टिगेशन में।" - पीछे खड़ा मयंक भी नीरज की हां में हां मिलाता हुआ बोला
"10 दिन नहीं एक हफ्ता देता हूं मैं तुम्हें 7 दिन है तुम दोनों के पास, प्रूफ करो खुद को या फिर छोड़ दो यह केस और बोल दो कि तुम लोगों से कुछ नहीं होता।" - कमिश्नर पूरी अकड़ के साथ बोला
"लेकिन सर 7 दिन तो...." - मयंक कुछ बोलने ही वाला था कि तभी नीरज ने उस की तरफ देख कर उसे चुप रहने का इशारा किया और खुद बीच में बोल पड़ा - "ठीक है सर 7 दिन भी बहुत है हमारे लिए, आप बस और एक बार विश्वास करिए। - नीरज अपनी बात रखते हुए बोला
"ओके देन मूव, क्योंकि तुम दोनों के सात दिन कल से नहीं बल्कि अभी से शुरू होते हैं और इन 7 दिनों में भी अगर तुम दोनों से कुछ नहीं हुआ तो तुम दोनों के ट्रांसफर लेटर के साथ मैं रेडी मिलूंगा तुम्हें अपने इसी केबिन में!" - कमिश्नर दूसरी तरफ अपना चेहरा फेरते हुए बोला और मयंक और नीरज दोनों ही कमिश्नर को सैल्यूट करते हुए और अपने गुस्से को दबाते हुए वहां से बाहर निकल आए।
"माना कि हम जूनियर हैं और वह हमारे सीनियर, लेकिन फिर भी यह कमिश्नर सर आखिर खुद को समझते क्या है?" - नीरज के सामने वाली चेयर पर उस के केबिन में बैठा हुआ मयंक गुस्से में बड़बड़ा रहा था।
"सवाल से पहले जवाब तो तूने खुद ही दे दिया मयंक! सीनियर है ना आखिर वैसे उन की भी गलती नहीं उन पर उन के सीनियर्स का प्रेशर रहता होगा।" - कुछ देर पहले तक नीरज खुद भी कमिश्नर सर के ऐसे धमकी भरे लहजे पर काफी गुस्सा था, लेकिन अभी शांत दिमाग से वह मयंक को समझाता हुआ वह बात बोल रहा था जो कि उस का खुद का दिमाग मानने को तैयार नहीं था।
"इतना ही प्रेशर रहता है तो खुद क्यों नहीं कर लेते थोड़ा काम, जरूरी थोड़ी है किसी और का गुस्सा तुम भी किसी और पर ही निकालो।" - मयंक उसी तरह गुस्से में फिर से बोला
"छोड़ मयंक यह बातें, हम अगली बार से उन्हें मौका ही नहीं देंगे कि वह हमें कुछ भी बोल कर निकल पाएं, और यह केस तो मैं अब सॉल्व कर के ही दम लूंगा।" - नीरज अपनी टेबल पर पड़ी उन फाइल्स को उठा कर घूरते हुए बोला
"हां, सही कहा सर आपने पर्सनल हो गया है अब तो मैटर।" - मयंक भी उस की बात पर हामी भरते हुए बोला
"चलो फिर लगते हैं काम पर?" - नीरज ने मयंक की तरफ देखते हुए बोला
"अभी? लेकिन अभी तो रात के 1:00 बज रहे हैं सर! पहले ही इतना टाइम वेस्ट हो गया कल से शुरु करते हैं ना..." - मयंक घड़ी की तरफ देख कर अलसाई आवाज में बोला
"यही बस तुम्हारे इसी एटीट्यूड और इस आजकल के चक्कर में इतना सुनना पड़ा है हम दोनों को आज और अभी भी तुम कल से बोल रहे हो, ठीक है तुम जाओ मयंक में अकेला ही काम कर लूंगा।" - नीरज ने मयंक से साफ लफ़्ज़ों में कहा और खुद केस फाइल उठा कर फिर से रीड करने लगा।
"आई एम सॉरी सर! मैं कहीं नहीं जा रहा, लेकिन एक बात मेरी समझ नहीं आई बार-बार केस फाइल रीड करने से क्या होगा?" - मयंक कंफ्यूज सा बोला
"तार जोड़ने की कोशिश कर रहा हूं मयंक! आखिर इन तीनों में कुछ तो कॉमन मिलेगा ना..." - नीरज ने उसी तरह से केस फाइल में नजरें गड़ाए हुए मयंक की बात का जवाब दिया
"है ना सर एक चीज तो कॉमन है।" - मयंक नीरज की बात पर बोला
"क्या?" - ये सुन कर नीरज ने भी चौंक कर केस फाइल से अपनी नजरें हटाकर मयंक की तरफ देखते हुए इस तरह से पूछा जैसे कि उसे मयंक की बातों पर विश्वास ही ना हो कि आखिर मयंक को ऐसी कौन सी कॉमन चीजें मिल गई जिन पर नीरज की नज़रें अभी तक नहीं पड़ी।
"अरे सर वह अननोन फोन कॉल, जिस ने हमें कॉल करके इन तीनों लाशों के बारे में बताया, वह एक चीज तो कॉमन है ना इन तीनों में और उस के बाद ना तो नंबर का पता लगा और ना ही कॉल करने वाले का..." - मयंक बड़े ही गर्व से बोला हो जैसे कि उस ने कोई बहुत ही नई और अनोखी बात बताई जो कि नीरज को तुझ से अब तक पता ही नहीं थी।
"शट अप मयंक! उस फोन कॉल के बारे में मुझे भी पता है और मैं इन तीनों की मरने से पहले की कोई लिंक कनेक्ट करने की कोशिश कर रहा हूं और नंबर का पता भीलग गया था वह उसी घर के पुराने लैंडलाइन का नंबर था, जहां पर हमें यह तीसरी वाली लाश मिली और तीनों बार उस नंबर से ही कॉल आया था।" - नीरज लापरवाही से बोला जैसे कि इस बात से केस पर कोई भी फ़र्क नहीं पड़ता हो।
"लेकिन सर... उस तरह के लैंडलाइन फोन तो अब चलन में ही नहीं है ना और जो नंबर है मोबाइल कंपनी के अनुसार तो वह भी काफी सालों से बंद है तो कोई उस नंबर से अब भला कॉल कैसे कर सकता है? यह तो सोचने वाली बात है ना और फिर उस इंसान का भी पता नहीं लगा जिस ने हमें कॉल करके इन लाशों के बारे में खबर की।" - मयंक ने फिर से पॉइंट उठाया
तो इस बार नीरज भी थोड़ा सोच में पड़ गया, लेकिन मयंक के सामने उस की बात को तवज्जो दे कर वह उस के भाव नहीं बढ़ाना चाहता था इसलिए उस ने इस बात को भी खारिज करते हुए बोला - "तो उस नंबर का कोई और फोन होगा, या वो लैंडलाइन नंबर अब फिर से शुरू हो गया होगा इस वक्त और वह आदमी इन सब मामलों में नहीं पड़ना चाहता होगा इसलिए ही सामने नहीं आ रहा, अक्सर लोग ऐसा करते हैं। वह इतना इंपोर्टेंट नहीं है मयंक! हमें अभी केस पर ध्यान देना चाहिए।"
"अरे सर! बट मुझे तो लगा था कि इंपॉर्टेंट बात है यह आखिर कैसे तीनों बार एक ही नंबर से कॉल आया हमें और बिल्कुल सही जानकारी मिली हमें तीनों लाशों के बारे में हो सकता है या खूनी का ही काम हो।" - मयंक फिर से बोला
"हां, खूनी पागल यह सिरफिरा ही होगा फिर तो जो खुद खून करने के बाद फोन कॉल कर के हमें लाश की लोकेशन भी बताता है, अब तुम कुछ ज्यादा ही सोच रहे हो मयंक!" - नीरज को भी यह बात थोड़ी अटपटी लगी लेकिन खूनी खुद ही फोन काॅल कर के लाशों की जानकारी देगा इस बात में ज्यादा दम नहीं लगा नीरज को और फिर से वह मयंक कि इस फालतू बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता था इसलिए उस ने उस के सामने ऐसा जाहिर किया कि इस बात में दम नहीं है।
"वैसे एक से एक सिरफिरे और साइको खूनी होते तो हैं लेकिन अब मुझे भी लग रहा है कि शायद मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूं सर! सीरियल किलिंग का केस तो नहीं है यह क्योंकि उन सीरियल कलर्स का तरीका भी काफी ज्यादा बेरहम होता है इंसान को मारने का..." - मयंक भी खुद ही अपनी बात से थोड़ा पीछे हटता हुआ बोला
"एक बार फिर से लोकेशन पर चलें क्या?" - नीरज अचानक ही बोल पड़ा
"लेकिन सर टीम के बाकी लोग कहां हैं इस वक्त..." - मयंक बोल ही रहा था कि नीरज ने उसे घूर कर देखा तो मयंक के बाकी शब्द उस के गले में अटक गए और उस का गला भी सूख गया, लेकिन फिर वह थूक निगल कर अपना गला तर करते हुए बोला - "आप का मतलब है सिर्फ हम दोनों? अरे नहीं, सर! मुझे नहीं लगता कि इस वक्त वहां जाना सेफ होगा। वैसे भी कितनी दूर है वह जगह यहां से और शहर से भी काफी दूर सुनसान वीराने में पड़ती है।"
क्रमशः
देविका रॉय
25-Feb-2022 05:37 PM
वेरी नाइस
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Pamela
03-Feb-2022 12:31 AM
Bahut badhiya...
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Seema Priyadarshini sahay
15-Jan-2022 09:31 PM
बहुत ही रोचक👌👌
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